व्यायाम पर निबंध
मनुष्य ही सभी प्राणियों में सबसे बुद्धिमान जीव है। शरीर के स्वस्थ रहने पर ही मानव अपने जीवन का वास्तविक आनंद ले सकता है अस्वस्थ शरीर संपूर्ण जीवन को नीरस बना देता है। अस्वस्थ शरीर न तो किसी कर्म को कर सकता है और न ही सभी वस्तुओं का भोग कर सकता है। शरीर अच्छी चीजें खाने से ही हुष्ट पुष्ट नहीं होता है अपितु शरीर को पूर्ण स्वस्थ बनाने के लिए व्यायाम अति आवश्यक है।
व्यायाम को मुख्य दो भागों में बांटा गया है-शारीरिक और मानसिक व्यायाम। मनुष्य को दोनों प्रकार के व्यायाम करने चाहिए। शारीरिक व मानसिक अस्वस्था से हमारा मानव जीवन भी अभिशाप बन जाता है। यदि हमारा शरीर स्वस्थ है तो स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास है। शारीरिक व्यायाम शरीर के विभिन्न अंगों को विभिन्न प्रकार से संचालित करने से होता है। शरीर के समस्त अवयवों को दिन में एक या दो बार अवश्य गतिशील होना चाहिए। उचित व्यायाम न करने से शरीर के कई तंतु निष्क्रिय पड़ जाते हैं वही निष्क्रिय तंतु शरीर की धड़कन व रक्त संचार में बाधक बन जाते हैं। जिनसे शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। शरीर तभी अस्वस्थ रहता है जब शरीर के कुछ अवयव या तंतु काम करना बंद कर देते हैं। व्यायाम से वे सब निरंतर क्रियाशील रहते हैं। शरीर व मन का घनिष्ठ संबंध है।
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम की अनेक विधियां बताई गई हैं। जिनके द्वारा शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को लाभ तो प्राप्त होता ही है, साथ ही आत्मा की अनुभूति भी होती है। प्रात कालीन भ्रमण भी एक प्रकार का व्यायाम है। सुबह की वायु एक प्रकार से अमृत है। हमें ऐसे व्यायाम नहीं करने चाहिए, जिन्हें हमारा शरीर स्वीकार न करता हो। हर आयु वर्ग के लोगों को हल्के-फुल्के व्यायाम अवश्य करने चाहिए। विद्यार्थी जीवन में युवावस्था वाले व्यायाम अति आवश्यक एवं उपयोगी हैं। युवावस्था में ही शरीर की आधारशिला बनती है, यदि युवावस्था में जीवन आलस्य में बिताया जाए तो सारी उम्र का रोना रहेगा। जो युवक विद्यार्थी जीवन में व्यायाम नहीं करते या खेलकूद में भाग नहीं लेते उनका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।
अतः व्यायाम हमारे लिए बहुत अत्यावश्यक है। हमें बचपन से ही व्यायाम कि आदत डाल लेनी चाहिए। तभी हम सुख पूर्वक लंबा जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
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Nielsh
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