विद्यार्थी जीवन पर निबंध
भूमिका
हमारे प्राचीन ऋषियों ने मानव जीवन को चार भागों में बांटा है- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास। इन चारों में ब्रह्मचर्य को जीवन की नींव कह सकते हैं। यह वह काल है जब मनुष्य सांसारिक चिंताओं और कष्टों से परे रहकर विद्या प्राप्ति में अपना ध्यान लगाता है।
अर्थ व महत्व
विद्यार्थी का अर्थ होता है- विद्या ग्रहण करने वाला। विद्यार्थी जीवन सारे जीवन की आधारशिला है। जिसकी आधारशिला मजबूत व सशक्त होती है, वह सदैव मजबूत रहता है और उसकी क्षति पहुँचने की कम संभावना होती है। इसी प्रकार जीवन रूपी भवन की नींव है विद्यार्थी जीवन। जो विद्यार्थी परिश्रम पूर्वक विद्या अध्ययन करके अच्छी श्रेणी में उत्तीर्ण होगा, वह भविष्य में महान व्यक्ति बन कर अपने जीवन को सफल बनाता है। इसके विपरीत जो विद्यार्थी जीवन को लापरवाही से बर्बाद कर देता है, उसका जीवन दुखमय व कठिन बनता है। वह सदैव ठोकरें खाता है।
विद्यार्थी जीवन की विशेषताएँ
इस जीवन में मानव का ज्ञान अपरिपक्व होता है। यह जीवन का सवेरा है। कच्ची अवस्था-कच्चा ज्ञान। इस अवस्था में हर क्षण सीखने का है। यह जीवन केवल विद्यालय में जाकर पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने के लिए ही नहीं होता, अपितु घर, बहार, समाज में उसको पग-पग पर सब कुछ सीखना है। समझदार विद्यार्थी हर बात को सीखने की कोशिश करता है। जो ऐसा करता है वही सच्चा ज्ञान प्राप्त करता है। आजकल विद्यार्थी के लिए घरों में, विद्यालयों में, समाज में सीखने के लिए हर प्रकार के साधन उपलब्ध है। इसलिए समझदार विद्यार्थी उपलब्ध साधनों का सदुपयोग करता है और लापरवाह विद्यार्थी सब की उपेक्षा कर बैठता है फल स्वरुप वह जीवन भर धक्के खाता है।
विद्यार्थी जीवन की सुखमय अवस्था
यह जीवन की मधुर अवस्था है। इस अवस्था में वह शहंशाह है। न कोई चिंता और न कोई भार। यदि कोई चिंता व दुख आते भी हैं तो वह क्षणिक होते हैं। जो पानी के बुलबुले की तरह उठते हैं और समाप्त हो जाते हैं। उछलना, कूदना, हर पल ठहाके मारकर हँसना इस जीवन की आम बात है। विद्यार्थी जीवन के सारे क्रिया-कलापों को मनुष्य जीवन भर याद करता है। उन्हें स्मरण करने मात्र से ही उसको एक विशेष आनंद का अनुभव होने लगता है। इसलिए यह जीवन की सुखमय अवस्था है।
उपसंहार
एक विद्यार्थी को सदैव अपने कर्तव्य पालन में जागरूक होना चाहिए। अनुशासित जीवन विद्यार्थी को उन्नति की चरम सीमा पर ले जाता है। इसलिए उसको सदैव अनुशासन में रहना चाहिए। ज्ञान ग्रहण करने के लिए अपनों से बड़ों का सदैव आदर करना चाहिए।
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