परिश्रम का महत्व
पर निबंध
भूमिका
संसार में सफलता प्राप्त करने का महत्वपूर्ण साधन परिश्रम हैं। परिश्रम करके हम जीवन की ऊँची से ऊँची महत्वाकांक्षा को पूरी कर सकते हैं। संसार में परिश्रम के बिना कोई भी कार्य संभव नहीं है। खाने के लिए भी प्रयत्न करना पड़ता है। खाना स्वतः पेट में नहीं चला जाता। परिश्रम करने की आदत बचपन से ही डाल ली जाए तो अच्छा है।
परिश्रम का अभाव
परिश्रम के अभाव में जीवन की गाड़ी चल ही नहीं सकती। परिश्रम के अभाव में व्यक्ति का जीवन निरर्थक है। चींटी से लेकर हाथी तक सभी जीव बिना परिश्रम के जीवित नहीं रह सकते। फिर मनुष्य तो सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है। यहां तक कि स्वयं का उठना-बैठना, खाना-पीना भी संभव नहीं हो सकता फिर उन्नति और विकास की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आज संसार में जो राष्ट्र सर्वाधिक उन्नत हैं वे परिश्रम के बल पर ही इस उन्नत दशा को प्राप्त हुए हैं। परिश्रमी मिट्टी से सोना बना लेते हैं।
परिश्रम से स्वास्थ्य को लाभ
परिश्रम से मनुष्य केवल अपने लक्ष्य की प्राप्ति ही नहीं करता, अपितु उसको शारीरिक व मानसिक लाभ भी प्राप्त होता है। घर मैं बैठे रहने या अधिक सोने से शरीर पंगु हो जाता है। लेकिन जो व्यक्ति अपने सार्थक कार्य में दिन रात लगा रहता है, उसका शरीर स्वस्थ, सुडौल तथा बौद्धिक रुप से चुस्त रहता है। अपने कार्यों में सफलता मिलने से दिल प्रसन्न होता है।
भाग्यवाद
कुछ लोग परिश्रम की अपेक्षा भाग्य को महत्व देते हैं। उनका कहना है कि भाग्य में जो है वह अवश्य मिलेगा, दौड़ धूप करना व्यर्थ है। यह तर्क निराधार है। यह ठीक है कि भाग्य का भी हमारे जीवन में महत्व है, लेकिन आलसी बनकर बैठे रहना और सफलता के लिए भाग्य को कोसना किसी भी प्रकार उचित नहीं। वेदवाणी में कहां गया है - बैठने वाले का भाग्य भी बैठ जाता है और खड़े होने वाले का भाग्य भी खड़ा हो जाता है। इसलिए स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था,' उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक मत रुको'। परिश्रम के बल पर मनुष्य भाग्य की रेखाओं को भी बदल सकता है।
उपसंहार
परिश्रमी व्यक्ति ईमानदार, सत्यवादी, चरित्रवान और सेवाभाव से युक्त होता है। जो व्यक्ति परिश्रम करता है, सफलता उसके चरण चूमने लगती है। इसके विपरीत परिश्रम न करने वाला व्यक्ति जीवन भर कष्ट उठाता रहता है। अतः हमें परिश्रम करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।

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